तीन वाला दस में… तीन वाला दस में… यानी Black Marketing

ATVM Generated Platform Ticket

ATVM Generated Platform Ticketजब मैने क, ख, ग पढ़्ना-लिखना सीखा तब से लेकर मैट्रिक पास करने तक जिस गुरू ने मेरा मार्गदर्शन किया, उस गुरू के पुत्र यानी मेरे गुरू भाई (यह बात अलग है कि वो मुझे अंकल बोलता है, शायद उम्र में अंतर की वजह से) का पहली बार दिल्ली आगमन था. उद्देशय था Combined Defence Services मे प्रवेश के लिये लिखित परीक्षा पास करने के बाद कर्मचारी चयन आयोग के साक्षात्कार की तैयारी करने के लिये जनकपुरी स्थित बालनोई अकादमी से कोचिंग लेना. 16 जुलाई 2011 की शाम पाँच बजे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ट्रेन आने का सही समय था.

पांच-छः दिन पहले कालका मेल दुर्घटना ग्रस्त हुई थी जिस वजह से अधिकतर ट्रेन लेट चल रही थी. जिस ट्रेन से गुरूभाई को आना था वो भी 2 घंटा लेट चल रही थी. तो करीब पौने सात बजे स्टेशन के बाहर अपन मौजुद थे. नई दिल्ली स्टेशन की भीड-भीड पुरी तरह अपने शबाब पर थी. प्लेटफार्म टिकट लेने वालो की लाइन देख कर लगा रहा था कि अगले एक घंटे भी लाइन में लगने के बाद शायद ही नबंर आये. इतने में ट्रेन के आने की अनाउंसमेंट सुनाई दी. एक बार सोचा कि बिना प्लेटफार्म टिकट के ही चलते है. पकडे गये तो फाईन भर देंगे वरना लाईन मे लगने की जहमत से तो बचेंगे. लेकिन दिल ने कहा कि गुरूभाई के सामने पकडे जाने पर खुद से ज्यादा गुरू की तौहीन होगी.

तभी नज़र पडी वही पर लगी आटोमेटिक टिकट वेंडिंग मशीन पर. कभी इसका इस्तेमाल किया नही था इसलिए इसके बारे में ज्यादा पता नही था. वहाँ पर दो-तीन मशीन लगी थी. देखा कि एक सज्जन (जो कि खाकी वर्दी पहने था) ने अपनी जेब से एक कार्ड निकाला और मशीन पर लगाने के बाद टिकट निकालने लगा. मन खुश हो गया. लगा कि अपने पास क्रेडिट कार्ड है ही तो फिर इसी मशीन का इस्तेमाल करते है. इसी खुशी में अगली मशीन पर पहुँचे और बिना इस्तेमाल के नियम पढ़े क्रेडिट कार्ड निकाल कर मशीन पर लगाने लगे. उलट-पुलट कर हर तरह से कार्ड लगाया लेकिन मशीन उस कार्ड को पहचानने को तैयार ही नही. तभी मशीन के उपर लगे दिशा-निर्देशों पर नज़र पडी तो पता लगा कि ये मशीन क्रेडिट कार्ड नही पहचानती. इसके कार्ड अलग होते है.

शरीर के हर अंग से पसीना निकलने की तैयारी मे था. तभी उसी खाकी वर्दी वाले सज्जन पर नज़र पडी, देखा जो टिकट उन्होने अभी अभी निकाला था वो किसी को थमा कर उससे कुछ पैसे ले रहे थे. दिमाग की बत्ती जली और अपने राम भी पहुँच गये उनके पास. खाकी वर्दी देख कर कुछ हिचक जरूर थी लेकिन उस पर कोई भी-किसी भी तरह का पहचान का निशान न देखकर लगा कि ये वर्दी नही है, खाकी रंग के सिर्फ कपडे पहने है. हौसला थोडा बढ़ा, कहा – भईए एक प्लेटफार्म टिकट अपने लिये भी निकाल दो. छुटते ही वो बोला – दस रूपये लगेंगे. अब अपना सिर घुमा, तीन रूपये के प्लेटफार्म टिकट के दस रूपये!!! यार, चल पाँच ले लेना. वो भी पुरा घाघ था, बोला पाँच क्यों दे रहे हो, लाईन में लग जाओ, तीन का ही ले लेना. समझ में आ गया कि ये भाई मानने वाला नही.

एक पल को फिर बिना टिकट स्टेशन के अंदर घुसने के विकल्प पर विचार किया, लेकिन अगले ही पल दस का नोट अपने पर्स में से निकलकर उस जनाब के जेब का वजन बढ़ा रहा था और वो मशीन में से टिकट निकालने के लिये आगे बढ़ चुका था. अपन जानबुझ कर भी, बिना आवाज़ लगाये ब्लैक मार्केटिंग करने वाले, उस खाकी वर्दी वाले को बढ़ावा दे रहे थे.

9 thoughts on “तीन वाला दस में… तीन वाला दस में… यानी Black Marketing

  1. aaj kal ghuskhori ke khilaf morcha buland hai, phir bhi aapne ye article likha uske liye aapke himmat ki daad deni hogi. Ab anna hazare sahab hotey to kehte ki na ghus lo na ghus do. par unko us lambi line me thore na khade hona tha. na hi bina platform ticket ke wo pakdatey. pakdatey aap jinko jaldi platform par pahuchna tha. aise me mere hisab se koi bhi banda wahi karta jo aapne kiya. aaj ke bharat me ghuskhori kuch to life asan kar hi deti hai.

    1. आदित्य, आजकल के हिसाब से तो हिम्मत का मतलब होता है कि बिना प्लेटफार्म टिकट के घुस जाओ और पकडे गये तो घूस दे आओ. वैसे यह घटना घुस की नही थी,ब्लैक मार्केटिंग की थी.

  2. बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण, मशीन पर भी ब्लैक मार्केटिंग।

    1. हाँ प्रवीण जी, मशीन पर भी ब्लैक मार्केटिंग. और वो भी खुलेआम.

  3. agar aap aisa soochte ha ki parivarta aaye aur aisa dubara kisi aur ke saath na ho to yaha ghatna sambandhit railway adhikari ko bhi likhe saath me copy to uske reporting ko likhe fir dekhe ki iska kya nateeja nikalta ha.
    aisi sambhavna kafi kam ha ki waha ke railway officers ko pata nahi hoga.. lekin unko ek bar apni taraf se bata kar aap apna farz to pura kare. let us hope for the best. pura railway mahakama bharast nahi ha TT bhai ko chod ke kyo ki unka job hi aisa ha.

    aap agar waha ke railway office hote to kya karte ?

    A. US aadami ka pata laga kar apna hafta bandh lete ya fir

    B. us aadami ko ander karva dete aur aap apna ek alag se private aadami waha niyukt kar dete taki us aadami per depend na rahana pade hafte ke liye

    C. Aisa hi ek lekh likhte aur apni mazboori bata dete ki railway ke pas abhi staff ki kami ha varna do- ek aadami aur extra ticket window per lagakar ticket ki kalabazari ko rok sakte

    D. Khud us ticket window per khade hoker usi adami se jaldi jaldi kam niklwane kei koshish karte jo ki dheere dheere ticket nikla kar bhrastachar ko janam de raha ha

    Answer A b Bhrastachar ko janam deta ha C kamchori ko aur D vyavharik to nahi lagta lekin aisa aapne kiya to dusaro ko ek misal ke roop me jana jayega aur bharastchar ka ant usi taraha sambhav ha.

    1. महेन्द्र जी, शिकायत तो करना चाहता था, लेकिन पूरा नही तो एक हद तक रेलवे का काफी बडा महकमा भ्रष्ट है. मेरी शिकायत पर शायद और कुछ हो या ना हो कुछ लोगों का हफ्ता तो बंध ही जाता. इसलिये चुपचाप वापस आ गया. वैसे आपने जो बहुविकल्पीय सवाल उठाया है, उसके विकल्प बडे दिलचस्प है. इसके लिए आपको साधुवाद.

  4. Dear Ajay!
    Mujhe lagta he ki yadi me aap ke jagah par hota to me jis vyakti ko receive krne gya tha use me platform ki jagah platform k bahar receive krta. aisa karne se aap ko platform ticket ki so called black marketing ka hissa nhi bnana padta.
    Ajay jee, Railway ko bharsht btate hue aap ko koi taklif nhi hui hogi lekin mujhe kisi bhi sanstha ko bharsht btate hue dukh hota hae. Railway officers/staffs usi samaj ke hisse hain jis samaj ke aap hisse hain.aur samaj me charitrawan logo ko bnane ka theka Railway ne nhi le rakha he.aap jaisa samaj nirmit karenge, waisa hi samaj ko return milega.
    Platform pe hme bewajah bheed lgane se bhi bachna chahiye. Hme har wo prayas karna chahiye jis se km se km hm vyaktigat roop se bharstachar ko badhawa dene se bache rh ske.

    1. कश्यप जी, मैने कभी यह नही कहा कि समाज में चरित्रवान लोगो को बनाने का ठेका रेलवे ने ले रखा है. आपकी इस बात से सहमति है कि हमें प्लेटफार्म पर बेवजह भीड़ लगाने से बचना चाहिये. लेकिन बेवजह भीड़ वहाँ लगती है जब एक आदमी को लेने या छोडने एक से ज्यादा व्यक्ति प्लेटफार्म पर चले जायें. बाकी आपके कीमती विचारों के लिये साधुवाद.

  5. dear

    aap ne jo kiya vo aaj har inshan kar rha hai ,
    koi samay ki bachat chahta hato koi , lambi line se bachna chahta hai
    ghus ghori kaha nhi hai

    lekin ho sake tab tak in sab se bachne ki kosis jarur karte hai

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