meri-tanhaiकभी उनकी खुशबु तो कभी उनकी यादें समेट लाई।

मेरे पास तो मेरी तन्हाई भी कभी तन्हा नही आई॥

रात भर मेरे बिस्तर पर बारिश होती रही, तकिया भीगता रहा।

मै अपनी तन्हाई को आगोश में समेटे लेटा रहा॥

सहमी हुई सी मेरी तन्हाई।

अपनी मासुम सी ऑखों से मुझे देखती रही।।

फिर चुपके से बोली, जिन्दगी की तरह तुम भी तो रूठ न जाओगे।

गमों के इस समंदर में अकेला डूबता तो न छोड जाओगे।।

थोडा प्यार आया मुझे, थोडा रहम उसकी नादानी पर।

मै तो खुद तैर रहा था गमों के समंदर में, उसका सहारा ले कर।।

रख कर उसके लबो पर उंगलियां।

अपनी कसक को दबाया और दिल ने मेरे जवाब दिया।।

विरह की अग्नि को साक्षी माना है, सात फेरो का ना सही।

मेरे महबूब के इंतजार में सात जन्मों का तो साथ हमारा है।।

मेरे आगोश में खामोश लेटी मेरी तन्हाई, फिर थोडा इठलाई।

इतना खामोश क्यों हो? इस सन्नाटे में तुम्हारी सिसकी भी न आई।।

क्या गर्मी में रजाई लपेटते हैं लोग।

या फिर सर्दी में पंखे की हवा झेलते हैं।।

सावन में पेडो से झडे पत्ते समेटते है।

या पतझड में नये फूलों की खुशबु सहेजते है॥

ये मौसम किसे कहते है, ये होता क्या है।

ए मेरी तन्हाई, मुझे तो सिर्फ तेरा ही सहारा है।।

तू तो है माशूका कइयों की, तू तो है माशूका कइयों की।

तू ही मुझे बता कि इंतजार के सिवा और इस दुनिया में क्या है।।

सहमी हुई सी मेरी तन्हाई, लुटाती रही अपने मोतियों को।

फिर चुपके से बोली, अब मै तेरी माशूका, तू मेरा महबूब है।।

सिर्फ विरह की झुलसती धूप और उनकी यादों की पुरवाई है।

उसकी बात सुन, उनकी यादें लौट आई।।

कभी उनकी खुशबु तो कभी उनकी यादें समेट लाई।

मेरे पास तो मेरी तन्हाई भी कभी तन्हा नही आई॥

रात भर मेरे बिस्तर पर बारिश होती रही, तकिया भीगता रहा।

मै अपनी तन्हाई को आगोश में समेटे लेटा रहा॥