ये मेरी विडम्बना नहीं, की बुद्ध को मोक्ष क्यों मिला

Moksha

Mokshaएक जानकार हैं नवीन. तकनीकी ज्ञान में काफी आगे हैं, यह तो पता था. मोबाइल मंत्रा नाम की एक कंपनी के कर्ता-धर्ता हैं. आध्यात्मिकता के क्षेत्र में भी बडी उँची चीज है, लेकिन यह कुछ दिनों पहले ही पता चला. यह भी पता चला कि समय समय पर Life transformation workshop का आयोजन करते रहते हैं. जिसमें ध्यान के माध्यम से व्यक्तिगत तथा सामुहिक उपचार पद्यतियों पर चर्चा तथा क्रियात्मक अभ्यास कराया जाता है. मैं भी ऐसे एक workshop में शामिल हुआ था और इसको उपयोगी भी पाया. हाल ही में उन्होने फेसबुक पर अपनी भावनाओं को कुछ इस तरह व्यक्त किया:

ये मेरी विडम्बना नहीं, की बुद्ध को मोक्ष क्यों मिला
भोग विलास करने के बाद, मोक्ष ही विराम था
समझा सको गर तुम प्रियतम तो बतलाना मुझे
सांप को रस्सी समझ कर, अभिज्ञान शकुनतलम क्यों लिख सके हम
वाल्मिकी के पाप मे क्या हुआ ऐसा असर,
भाव क्या था उस समय, रामायण लिख सके हम
दूर जा रहे हो तुम, दर्द कुछ होगा तो कम
आँगन में तेरे मुक्त हो सकू, एक लम्हा होगा तो कम

पढ़ कर कुछ कुछ हुआ और मेरी भावनाएं भी कुछ इस तरह बह चली:

ये लम्हा जायेगा साथ दूर तक, विराम के बाद भी.
मीठे दर्द का रहेगा अहसास, मुक्त होने के बाद भी.
क्या यही चाहते थे तुम प्रियतम, विरह मिलन के बाद भी.
इसका होगा ऐसा असर, शायद लिख जाओगे एक महाकाव्य तुम भी.

इस पर नवीन ने टिप्पणी की: ajay, beautiful rejoinder.

लेकिन मेरे को यह rejoinder नही लगा. मुझे तो यह supplementary लगता है. आप क्या कहते हैं?

11 thoughts on “ये मेरी विडम्बना नहीं, की बुद्ध को मोक्ष क्यों मिला

  1. Maine kahin padha tha ki Buddha satya ke maulik swaroop ko pehchante the par satya ke vibhin rupon ko pehchanne main unhain bhi dikkat aa sakti thi.

  2. शिला की जवानी की भ्रान्ति से जमीनी सचाई पर लाने की कोर्शिस अब कितने लोग करते हैं ?
    धन्यबाद ऐशी कोर्शिस के लिए धन्यबाद……….

  3. सांप को रस्सी समझ कर, अभिज्ञान शकुनतलम क्यों लिख सके हम

    साँप को रस्सी समझ कर तो राम चरित मानस लिखा गया था ….

    1. संगीता जी, इस बात पर ध्यान नही गया था, अभी तक. मै नवीन (इन पंक्तियों के रचियता) को इस से अवगत कराता हूँ.

    1. ओशो का अध्यात्म में अपना एक अलग स्थान है. हम तो उनका अनुकरण ही कर सकते है.

  4. Hindustan men nari ka mahatv samjhne men der kar di
    are mere iswar samhalo ise nahi to jeeyenge kis sahare hum

  5. Thank you so much sir
    Main aha zindagi se dur ho gya tha
    Jabki suruaat Maine yahin se kiya tha
    Par ab laut aya hoon…

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