वो मेरे स्कूल की किताब में रखा एक गुलाब।
स्कूल की बगिया से, सबसे छुपाकर, तोड़ा था मैंने।।
किसी को देकर ये गुलाब अपना बनाने की सोची थी।
शायद बचपन का भोलापन था, दिल की नादानी थी।।
किताबे बदल गई, स्कूल बदल गए, पुराने साथ छूटे, नए रिश्ते बने।
आज न तो वो किताब है और न ही वो गुलाब।।
लेकिन दिल की किताब के कुछ पन्नो में छिपी।
गुलाब की तरह खुशबु बिखेरती, वो नादानी आज भी याद है।।