अजब सा शोर है सब ओर, सांस लेने से भी डरता हूँ।
ये रोशनी है कैसी, आँखें खोलने से भी डरता हूँ।।
सफर है ये कैसा, मंजिल पहुँचने से भी डरता हूँ।
बैठा हूँ दरख़्तों की छाँव में, अपने साये से भी डरता हुँ।।
डर

अजब सा शोर है सब ओर, सांस लेने से भी डरता हूँ।
ये रोशनी है कैसी, आँखें खोलने से भी डरता हूँ।।
सफर है ये कैसा, मंजिल पहुँचने से भी डरता हूँ।
बैठा हूँ दरख़्तों की छाँव में, अपने साये से भी डरता हुँ।।