दरख़्तों की छाँव अब धूप सी लगती है।
रास्ते की मिटटी पत्थर सी लगती है।।
उनसे बिछड़ने की सज़ा है ये यारो।
कि जिंदगी भी अब बोझ सी लगती है।।
बोझ

दरख़्तों की छाँव अब धूप सी लगती है।
रास्ते की मिटटी पत्थर सी लगती है।।
उनसे बिछड़ने की सज़ा है ये यारो।
कि जिंदगी भी अब बोझ सी लगती है।।