2013
तेरे इश्क में फना
तेरे इश्क में फना हो जाता मै, गर उम्मीद का साथ न होता. अभी विरह की रात सही, मिलन की सहर का आगाज़ कभी तो होगा. बाँहों में अपनी तुझे समेट ना सका कभी तो क्या, तेरी मज़ार के पहलु में एक पत्थर मेरे नाम का तो होगा.
ना कोई दोस्त ना कोई रकीब
इशक भी अज़ीब शै है, सिर पर चढ कर बोलता है। तन्हाई भरी रातों में दिल को टटोलता है।। मेरी हिज्र की ये रातें, काटे नही कटती उनकी याद में। अपनी कहानी किससे कहूँ, सबके दिल में एक शूल है।। ना कोई दोस्त ना कोई रकीब है, जिंदगी बडी अज़ीब है। गले उनको कैसे लगाऊँ,…
कयामत की आरजू
कायनात मेरी रकीब तो नहीं। फिर मुझे कयामत की आरजू क्यों है।। मेरे नशेमन से उनकी रूखसत अब तलक याद है। आँखों में अश्क नहीं, फिर लबों पे मुस्कान क्यों है।। कयामत तक साथ रहने का, वादा उनका मुझे अब तलक याद है। क्यों कर बेवफा करार दूँ उन्हें, वो ना सही उनकी याद तो…
ए तन्हाई तुझे क्या हुआ
ए जमाने ना कर इतना रश्क किस्मत पे हमारी. मुहब्बत तो हमे वो इस जहाँ मे सबसे ज्यादा करते हैं. उसका नाम तन्हाई है, जिसे लोग हमारी महबूबा कहते हैं. हमे उनसे इतनी मोहब्बत हो गयी कि किस्मत को भी रश्क हो आया. ए तन्हाई तुझे क्या हुआ, मेरे प्यार को देख तेरी आँखों में…
मेरी तन्हाई भी कभी तन्हा नही आई
कभी उनकी खुशबु तो कभी उनकी यादें समेट लाई। मेरे पास तो मेरी तन्हाई भी कभी तन्हा नही आई॥ रात भर मेरे बिस्तर पर बारिश होती रही, तकिया भीगता रहा। मै अपनी तन्हाई को आगोश में समेटे लेटा रहा॥ सहमी हुई सी मेरी तन्हाई। अपनी मासुम सी ऑखों से मुझे देखती रही।। फिर चुपके से…
दीवानगी में patience
आजकल फेसबुक (या फंसेबुक) से वास्ता काफी कम हो गया है. होली – दीवाली ही इस बुक को खोलना होता है. ऐसे ही आज खोला तो एक जानकार ने अपनी भावनाओ को कुछ इस तरह से व्यक्त किया हुआ था: क्युँ तेरे बिन सब्र कर लेते है हमदीवानो सी बेसब्री से मरते है हर पलकुछ…