तुम ही हो…
मेरा दिन भी, मेरी रात भी। मेरा रब भी, मेरी ईबादत भी। मेरा पुराण भी, मेरी कुरान भी। मेरा रास्ता भी, मेरी मंजिल भी। मेरा जख़्म भी, मेरी दवा भी। तुम ही हो, तुम ही तो हो।।
मेरा दिन भी, मेरी रात भी। मेरा रब भी, मेरी ईबादत भी। मेरा पुराण भी, मेरी कुरान भी। मेरा रास्ता भी, मेरी मंजिल भी। मेरा जख़्म भी, मेरी दवा भी। तुम ही हो, तुम ही तो हो।।
वक्त के थपेड़े सहे हैँ इतने। डर अब किसी और का नहीं।। सफर किये हैं बेमंज़िल इतने। खुशी अब मंजिल मिलने की नहीं।। चाहा था किसी को शिद्दत से इतना। चाहत अब किसी और की नहीं।। जिंदगी से लड़े हैं इतना। गम अब मौत का नही।।