डर

डर डर
अजब सा शोर है सब ओर, सांस लेने से भी डरता हूँ।
ये रोशनी है कैसी, आँखें खोलने से भी डरता हूँ।।
सफर है ये कैसा, मंजिल पहुँचने से भी डरता हूँ।
बैठा हूँ दरख़्तों की छाँव में, अपने साये से भी डरता हुँ।।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *