India तो महान है ही, इसका कानून और भी महान है। भारत की परंपरा रही है कि, इसने अपने को चोट देने वाले हर शख्स और मुल्क को आसानी से माफ कर दिया है। फिर चाहे वो चीन हो या पाकिस्तान, अफजल हो या कसाब।
चौंकिये मत। मुंबई हमलो मे पकडा गया एकमात्र जिंदा आतंकवादी मोहम्मद अजमल आमिर कसाब अभी रिहा नही हुआ है। लेकिन यह केस जिस तरफ करवट बदल रहा है, उससे लगता है कि कसाब को ज्यादा से ज्यादा तीन साल की सजा होगी। अदालत ने कसाब की उम्र का पता लगाने के लिये जाँच का आदेश जारी कर दिया है। इस जाँच मे अगर साबित होता है कि कसाब अभी नाबालिग है तो उसका मामला बाल अपराध अदालत को सौंप दिया जायेगा। और बाल अपराध न्यायाधिकरण कानून (Juvenile Justice Act) के तहत किसी भी अपराध की अधिकतम सजा मात्र तीन साल है, फिर चाहे अपराध कितना भी संगीन क्यों न हो। अब मुंबई कांड को ही ले लीजिये। इसमे कितने ही लोग मरे, कितने ही घायल हुए, आर्थिक नुकसान हुआ अलग से। इतने संगीन अपराध को अंजाम देने के बाद भी कसाब अगर नाबालिग साबित हो जाता है तो उसे मात्र तीन साल की ही सजा होगी। यह तो बात हुई मौजुदा हालात की। लेकिन इसके दूरगामी परिणाम और भी भयावह होंगे।
क्या आप इससे सहमत नही हैं कि अब आतंकियो की जो भी नई खेप भारत को नुकसान पहुँचायेगी, वह कम उम्र नौजवानो यानी नाबालिगो की ही होगी और अगर किसी तरह से वो पकडे जाते हैं तो सजा के नाम पर उन्हे तीन साल की मामूली सजा मिलेगी और वो भी किसी जेल मे नही बल्कि किसी Remand Home मे, जहाँ से भाग निकलना कोई मुशकिल काम नही।
आतंकवादी मजे ले रहे होंगे इस कानूनी प्रक्रिया से!
जोर से बोलो जय हो….
कानून परिस्थिति अनुरूप बदले जा सकते है. मगर जब पोटा हटाया जा सकता है नया कानून कौन लाएगा?
हालांकि, अभी कसाब की उम्र स्थापित नहीं हो पायी है, बावजूद इसके कानून तो कानून है। कानून का बनाया जाना जनाकांक्षा और जनहित पर ही निर्भर करता है। कम से भारत ने इस मानदंड को बनाये रखा है। जो मानवतावादी होने की निशानी है। वैसे भी किसी भी देश, संविधान से बड़ी है मानवता। हां, जहां तक कसाब जैसे हत्यारों पर सवाल उठेगा, जाहिर है जनाकांक्षा, जनहित का सवाल भी उठना चाहिए। एक समय था जब बाल सुधार कानून के लिये तत्कालीन सामाजिक मान्यताओं के आधार पर नाबालिग की उम्र तय की गयी थी। आज, विश्व भर में सामाजिक परिवेश बदल रहा है। जिस तरह वोट देने की उम्र घटा दी गयी, ऐसा ही नाबालिग बताने की उम्र सीमा पर भी बहस होनी चाहिए। बावजूद इसके, कानून-न्याय पर जनआस्था बनाये रखने के लिये कसाब अगर बच निकलता है तो यह कोई बहुत बड़ी कीमत नहीं होगी।
You have put it very correctly. WE have only learned how to kick our freedom for meager political gains, as a result a common man is paying a heavy price and is frustrated.
india mein aur sakt kanun ki jarurat hai
Everyone is seeing towards kasab sins no one is thinking , how kasab reach here in INdian court. The answer is injustice and hunger of family and uneducated parents. A great problem is knocking in our door too. Too much corruption and injustice and late justice and hunger and unemployment can give us so many kasab so wake up and stand up for your own children that no one Indian child be stand in any country court like a terrorist.