वोट करो, भारत बदलो। उंगली उठा, वोट कर। जागो, भारत जागो। इस तरह के ना जाने कितने नारे आज अखबार और टीवी चैनलो के माध्यम से हमारे दिलो-दिमाग पर छा रहे है।
कुल पाँच चरणों मे होने वाले आम चुनावो के दो चरण पुरे हो चुके है। हरेक की अपनी पसंद – नापसंद है कि किसको चुने और किसको अगले चुनाव तक इंतजार करायें। कुछ साल पहले तक मेरी भी एक पसन्द थी। लेकिन अब दिल है कि मानता नही। कितना समझाया कि यार एक नागनाथ है तो दुसरा साँपनाथ। अब किसी को तो चुनना ही पडेगा। क्यों न उसे चुना जाये जिसमे जहर मात्रा में भी कम हो और असर में भी। पर ये नादान कहता है कि आमिर खान से लेकर जॉन इब्राहिम तक, बिंदास से लेकर एनडीटीवी तक हर कोई वोट करने और देश को बदलने की बात कर रहा है।
क्या किसी में इतनी ताकत नही कि वो वोटिंग से जुडे नियमो को बदलने की जरूरतों का मुद्दा उठाये। कोई काबिल प्रत्याशी न मिलने पर क्यों नही हम अपना वोट “किसी को भी नही” देने का अधिकार रखते हैं। किसी चुने हुए जन प्रतिनिधी के कार्य ढंग से नही कर पाने पर उसे वापस हटाने का अधिकार क्यों हमे आज तक नही मिला। आज राजनीति का अपराधीकरण दिन-ब-दिन बढता जा रहा है। चुनाव बिना किसी मुद्दे के लडे जा रहे हैं। शालीन से शालीन समझे जाने वाले राजनेता भी दुसरो पर कीचड उछालने का मौका ढूँढ रहे हैं। पार्टियो द्वारा जातिगत पक्षपात के उदाहरण देख कर लगता है कि हम चार नही चालीस वर्णों मे बँट गये हैं। कुर्सी के लिये बैंगन की तरह लुढकने वाले राजनेता, जनता और देश के हित की बात कब सोचेंगे। शायद उनके पास इसके लिये टाईम ही नही बचता होगा। इनका हाल देखकर शायद अब भगवान भी अवतार न ले।
अभी तक तो मेरा दिल ही weeping weeping हो रहा था, लेकिन लगता है कि अब मै भी रो पडूँगा। आपसे गुजारिश है कि अपने दिल का हाल जरूर share करें।
पहले चुनाव परिणाम देख लें। अप्रत्याशित हो सकते है। उसके बाद तय करेंगे वीपने के बारे में।
After reading ur dis article my heart also starts weeping. but yes all you have written its Bitter but true. on one hand sanpraj looking for a chance to bite people while on d other hand nagraj is trying to convince people that he has no poision in himself. Its a big irony but it can happen only in india….
bilcul sahi vot kisiko bhi do sabhi ek jese he