शाम भी वही थी, शहर भी वही था।
बेकरारी भी वही थी, सुरूर भी वही था।
आँखों में प्यार भी था, दिल में इंतज़ार भी था।
फिर जाने क्या हुआ, नज़रे झुकी, कदम बहके।
रास्ते बदल गए, ना जाने अजनबी क्यों हो गए हम।
तुम्हारे लबो पे खामोशी, आँखों में तूफाँ सा क्यों है।
मेरे हमदम, तेरे इंतज़ार में मेरा कतरा-कतरा परेशाँ सा क्यों है।
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