- तेरह साल की एक बच्ची जिसको कैंसर की दवाई दी गयी. कैंसर तो पुरी तरह ठीक नही हुआ, उल्टा कुल्हे की हड्डीयाँ गल गयी. बढती उम्र की वजह से उसका कुल्हा भी नही बदला जा सकता.
- पैंतीस वर्षीया एक तलाकशुदा महिला जिसके शरीर को देखकर एक छोटे बच्चे के शरीर का आभास होता है. वजह कि पिछ्ले चार साल से हर हफ्ते में दो बार रक्त शोधन का होना. कभी इस प्रक्रिया के दौरान कुछ तकलीफ हो गयी तो अगले दो दिनों तक हस्पताल में रहना और फिर अगली बार रक्त शोधन करवाकर ही वापस घर जाना.
- पैंतालिस वर्षीया एक शादी-शुदा महिला जिसे बीस वर्ष पहले 1991 में एक ट्रक ने कुचल दिया था. उस समय 11 महीने हस्पताल में रहकर ईलाज करवाया. ठीक होकर घर वापस गई. एक कमी रह गयी कि पसली की हड्डीयाँ नही जुडी क्योंकि पसली पर पलास्तर नही किया जा सकता. इसके बाद उसने तीन बच्चों को जन्म दिया. अब बीस वर्षों के बाद दोबारा अस्पताल में भर्ती है क्योंकि उसका ह्रदय धीरे धीरे सरककर पसलियों के पिंजरे से नीचे आना शुरू हो चुका है. ह्रदय के काम करने की क्षमता भी कम होती जा रही है.
13 अक्टुबर को बिटिया एक दुर्घटना में घायल हो गयी थी. जिसकी वजह से अक्टुबर में करीब तीन दिन और दिसंबर में करीब पाँच दिन अस्पताल में रहना पडा. अक्टुबर में तो एक दिन गहन चिकित्सा केंद्र में और दो दिन सेमी प्राइवेट कमरें में रहकर गुजर गयें. दिसंबर में सेमी प्राइवेट कमरा उपलब्ध ना होने की वजह से सामान्य वार्ड में रहना हुआ. पाँच दिनो के दौरान उपरोक्त व्यक्त रोगियों के अलावा और कई तरह के मरीजों को देखने जानने का मौका मिला.
अस्पताल जाने से पहले लगता था कि अपना दुःख बहुत बडा है. लेकिन अब लगता है कि अपना दुःख तो कुछ भी नही, इनका दुःख तो मुझसे कई गुना ज्यादा है. भगवान, इन्हे शक्ति देना.
Sach h..main b jab jyada sochta hu to lagta h apna dukh to kuchh b nahii..duniya mein humse b bade bahut dukhi h..
ishwar unhe shakti de..
jindagi roj ek naya jakhm khati he….
phir v muskurati he
phir v muskurati he
यावज्जीवेत सुखं जीवेद ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत, भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ॥
अर्थ है कि जब तक जीना चाहिये सुख से जीना चाहिये, अगर अपने पास साधन नही है, तो दूसरे से उधार लेकर मौज करना चाहिये, शमशान में शरीर के जलने के बाद शरीर को किसने वापस आते देखा है?