जापान में Earthquake और सुनामी से हुए ह्रदय विदारक तांडव के समाचार ने पल भर के लिए सभी के दिल और दिमाग को सुन्न कर दिया. एकदम से आँखों के सामने 26 दिसम्बर 2004 का वाक्या आ गया. हालॉकि जापान मे हुए नुकसान का पुरा आकलन होना अभी बाकी है. तकनीकी रूप से संपन्न जापान जैसा देश जब इस प्राकृतिक आपदा से नही बच पाया तो फिर और देशों की क्या बिसात. वैसे तो भारत भी तकनीकी क्षेत्र में कुछ कम नही है. लेकिन भारतीय मानसिकता जापानी मानसिकता से कुछ अलग है.
2004 के पहले से ही प्रशांत महासागर के किनारे बसे हवाई महाद्वीप में एक सुनामी चेतावनी केंद्र कार्यरत था. 2004 में आये सुनामी के बाद जनवरी 2005 में संयुक्त राष्ट्र के एक सम्मेलन में हिन्द महासागर में इस तरह के चेतावनी केंद्र स्थापित किये जाने पर सहमति हुई. विडम्बना देखिये कि यह सम्मेलन जापान में ही हुआ था. खैर जुन 2006 में हिन्द महासागर में इस तरह के करीब 25 सुनामी चेतावनी केंद्र स्थापित किये गये. इसका परिणाम यह हुआ कि जुलाई 2006 में इंडोनेशिया सरकार को सुनामी चेतावनी केंद्र से अग्रिम चेतावनी मिली. दुर्भाग्य कि सरकार जनता तक यह सुचना समय पर नही पहुँचा सकी. खैर यह मामला इंडोनेशिया का था और हम बात कर रहे थे भारत की.
आज ही एक समाचार पढा कि हिन्द महासागर में लगे इस तरह के कई यंत्र बेकार हो चुके हैं. कारण थोडे से पैसो का लालच. समुद्र में मछली पकडने गये मछुआरो ने थोडे से पैसो के लालच में इन यंत्रो को तोडकर इनके अंदर से धातु के हिस्से निकाल लेते थे. इस समाचार के मुताबिक आज की तारीख मे सिर्फ तीन यंत्र ही काम चलाऊ बचे हैं.
उपर से तुर्रा यह कि कुछ समाचार पत्रों में Super Moon की घटना (जब चॉद और पृथ्वी एक दुसरे के सबसे नजदीक होंगे) और इसके परिणामों के जो समाचार आ रहे हैं, खुदा ना खास्ता अगर यह समाचार सही साबित हुए तो क्या होगा, इसकी कल्पना से ही सिहर उठता हूँ. शायद हिन्द महासागर मे लगे यंत्रो को तोडने वाले मछुआरो को चॉद और पृथ्वी के इस रोमांस का पुर्वानुमान नही होगा, वर्ना वो सुनामी जैसी प्रलयंकारी घटना से बचाव के उपायों को क्षतिग्र्सत न करते.
वैसे क्या आप चॉद और पृथ्वी के इस रोमांस से इत्तेफाक रखते है?
अभी तो निकटता आनी बाकी है।