मृत्यु, एक शाश्वत सत्य जिंदगी का।
फिर क्यों डरते हो तुम इससे।
ये तो नेमत है उस परवरदिगार की।
प्यार है उसका।
निमंत्रण है तुम्हारे लिए।
मिलने का उससे, उससे एकीकार होने का।
फिर भी डरते हो।
कहते हो बहादुर खुद को।
और उस के बुलावे को नकारते हो।
ये कैसी फितरत है, ये कैसी पूजा तुम्हारी।
बड़े बड़े शूरमा न बच पाये इससे।
तो क्या बिसात तुम्हारी।
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