सुखे दरख्त की गुमनाम छाँव सा। मेरी मुहब्बत का निशाँ बाकी आज भी है।।
पुरानी किताब के पीले पन्नो सा। उसकी यादों का रंग मेरे वजूद पर आज भी है॥
बारिश से धुले कागज पर स्याही के निशाँ सा। उसका वो अक्स याद आज भी है॥
धुंध में लिपटे सुरज की गर्मी सा। उसकी साँसों का अहसास आज भी है॥
दोपहर के सन्नाटे को चीरती कोयल की कूक सा। उसकी पायल की झंकार का इंतज़ार आज भी है॥
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